प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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... ज्ञानशंकर को दो-चार दिन भी शान्ति से बैठकर काम को समझने का अवसर न मिला। दूसरे ही दिन दरबार की तैयारियों में दत्तचित्त होना पड़ा। प्रातः काल से सन्ध्या तक ...

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